‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ ये नारा तो पूरे देश ने सुना है। राम मंदिर की अलख जगाने में इस नारे का अहम योगदान रहा है। क्या आप जानते हैं ये नारा किसने दिया था। पढ़िए ये रिपोर्ट 22 जनवरी 2024 सोमवार को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। करीब 500 साल से मंदिर बनने का सपना देख रहे हर रामभक्त की मुराद पूरी होगी। मंदिर बनने का सफर बहुत लंबा रहा। इसमें कई रामभक्तों ने अपने प्राण दिए, अनेक ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। एक ऐसे ही कारसेवक हैं बाबा सत्यनारायण मौर्य। जिन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान हिंदुओं में उत्साह का संचार करने वाले कई नारे दिए। एक नारे ने ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ ने पूरे देश में राम नाम की अलख जगाने में महती भूमिका निभाई। इस नारे के प्रणेता बाबा सत्यनारायण मौर्य एक भटकते हुए बाबा के रूप में भी पहचाने जाते हैं। फिलहाल, इनका ठिकाना इंदौर, उज्जैन और मुंबई है।रामभक्ति में लीन रहने वाले बाबा मौर्य शुरुआती दिनों में पढ़ाई खत्म करने के बाद मंदिर आंदोलन से जुड़ गए और अयोध्या की गलियों में राम मंदिर निर्माण की अलख जगाने लगे। पेंटिंग के शौकीन बाबा ने गेरू की मदद से गली, मोहल्लों की हर दीवार पर नारे लिखना शुरू कर दिया। इन्हीं में से एक नारा था- रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। इस नारे ने हर रामभक्त में एक नई ऊर्जा का संचार किया। श्रीलंका से भगवान श्री राम की चरण पादुका लेकर यात्रा पर निकले बाबा मौर्य ने अमर उजाला से खास बातचीत की।
ऐसे शुरू हुआ सफर
उन्होंने बताया कि मुझे उज्जैन में पढ़ाई के दौरान मंदिर आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला। मैं यहां दीवारों पर नारे उकेरने लगा। 1990 में दोस्तों के साथ अयोध्या की ओर रुख किया। यहां भी दीवारों पर नारे लिखने लगा। मेरे लिखे नारे जब विश्व हिन्दू परिषद के प्रमुख अशोक सिंघल ने पढ़े तो उन्होंने कहा कि इसे आगे बढ़ाएं। जब बाबा के गाने और कविताओं के बारे में सिंघल को पता चला तो उन्होंने दिल्ली भेजकर गाने और नारों की कैसेट रिकॉर्ड करवाई। ये नारे बाद में मंच पर गूंजने लगे। इसके बाद बाबा को धीरे-धीरे मंच प्रमुख घोषित कर दिया गया। उज्जैन में आयोजित एक कार्यक्रम में बाबा ने मंच से ही रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा दिया था। बाबा बताते हैं कि एक गीत था- सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे। इसे गाते समय कई पंक्तियां जुड़ीं, लेकिन इसमें एक पंक्ति.. रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे… खूब चली। बाबा ने रक्त देंगे, प्राण देंगे मंदिर का निर्माण करेंगे.. जैसे कई नारे दिए। आज मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के सवाल पर बाबा कहते हैं कि हम एक सपना देखते हैं उसे पाने के बाद कितने खुश होते हैं। उसी प्रकार रामलला का मंदिर प्रत्येक कार सेवक के जीवन का अमूल्य सपना है जो अब पूर्ण होने वाला है।
बैनर के कपड़े से रामलला का अस्थाई मंदिर बनाया था
मौर्य ने बताया कि जब 92 में ढांचा गिराया गया, उसके पहले से मैं वहां पेंटिंग के लिए मौजूद था। मैंने पूरे अयोध्या में बहुत सारे बैनर लगाए थे। उस समय 4 फीट चौड़ा कपड़ा बहुत कम मिल पाता था, इसलिए मैं उज्जैन से तीन-चार थान कपड़ा लेकर गया था। पीले रंग का कपड़ा तो मैंने बैनर बनाने में इस्तेमाल कर लिया था। हमें नहीं पता था कि 6 दिसंबर को ढांचा गिराया जाएगा। ढांचा गिरने के बाद जब सरकार ने नए निर्माण पर रोक लगा दी तो कारसेवकों ने कहा कि अब क्या करें। इसके बाद हमने उसी मलबे में तख्त रखकर रामजी को बिठा दिया। इसके बाद पत्थर बराबर किए और लकड़ी गाड़कर बैनर वाले गुलाबी कपड़े से अस्थाई मंदिर बना दिया। इसके बाद हमें दीवार बनाने का मौका मिला तो हमने हाथ से ही ईंट रखना शुरू कर दिया। 8 तारीख को केंद्रीय पुलिस आ गई। सभी बड़े नेता अंडरग्राउंड हो गए।
बैनर के कपड़े से रामलला का अस्थाई मंदिर बनाया था
मौर्य ने बताया कि जब 92 में ढांचा गिराया गया, उसके पहले से मैं वहां पेंटिंग के लिए मौजूद था। मैंने पूरे अयोध्या में बहुत सारे बैनर लगाए थे। उस समय 4 फीट चौड़ा कपड़ा बहुत कम मिल पाता था, इसलिए मैं उज्जैन से तीन-चार थान कपड़ा लेकर गया था। पीले रंग का कपड़ा तो मैंने बैनर बनाने में इस्तेमाल कर लिया था। हमें नहीं पता था कि 6 दिसंबर को ढांचा गिराया जाएगा। ढांचा गिरने के बाद जब सरकार ने नए निर्माण पर रोक लगा दी तो कारसेवकों ने कहा कि अब क्या करें। इसके बाद हमने उसी मलबे में तख्त रखकर रामजी को बिठा दिया। इसके बाद पत्थर बराबर किए और लकड़ी गाड़कर बैनर वाले गुलाबी कपड़े से अस्थाई मंदिर बना दिया। इसके बाद हमें दीवार बनाने का मौका मिला तो हमने हाथ से ही ईंट रखना शुरू कर दिया। 8 तारीख को केंद्रीय पुलिस आ गई। सभी बड़े नेता अंडरग्राउंड हो गए।
प्रोफेसर बनने निकले थे बाबा, बन गए कारसेवक मौर्य
मूलतः राजगढ़ के रहने वाले हैं। बाबा ने एम कॉम किया और एमए गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं। पिता टीचर थे, फिर भाई और दोनों बहनें भी टीचर बनीं। बाबा कहते हैं कि मैं भी प्रोफेसर बनने निकला था। लेकिन नौकरी में जाने के बजाय परमात्मा ने मुझे कारसेवक बनाकर अयोध्या पहुंचा दिया। जब मैं वहां हाफ पैंट और बनियान में घूमता था और लोगों को पता चलता था कि मैं गोल्ड मेडलिस्ट हूं तो वे हंसते थे। बाबा यह बताते हुए बहुत ही फख्र जाहिर करते हैं कि हमने जो अस्थाई मंदिर उस समय बनाया था, वह आज तक बना हुआ है।
पुलिस का डर था, पर कारसेवा से नहीं डिगे बाबा
बाबा के मुताबिक, जब तक अयोध्या में रहे, लगातार झांकी, आकृति और नारे दीवारों पर बनाते रहे। उस समय यह ध्यान रखना होता था कि कहीं पुलिस तो नहीं आ रही है। इसी खतरे के कारण मैं जल्द से जल्द आकृति बनाने लगा। 6 दिसंबर को जिस मंच पर मैं था, वहां भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत कई बड़े नेता थे। मैं ही उसमें एक ऐसा था, जिसे कोई नहीं जानता था। आपने बताया कि प्रसिद्ध नहीं होना ही मेरे बचने का कारण था। क्योंकि उस दिन मंच का संचालन मैंने किया था। पूरे अयोध्या में पेंटिंग मैंने बनाई थी। मंदिर आंदोलन का प्रांत प्रचारक मैं था। रामचरण पादुका की कई कैसेट आंदोलन के लिए बनाई थी। उस समय जो 40 लोग पकड़े गए, वे सभी नेता बन गए। मेरा नाम नहीं था।
अमेरिका में 57 बार लगाई पेंटिंग
बाबा ने बताया कि मैंने 57 बार राम की प्रदर्शनी अमेरिका में लगाई। वेस्टइंडीज में भी प्रदर्शनी लगाई। अशोक सिंघल के साथ 7 साल और नरेंद्र मोदी के साथ काम किया। मध्यप्रदेश चुनाव प्रचार में मुंबई से आता था। पांच साल तक टीवी में भी काम किया। दुनियाभर में जाने के कारण अब समय नहीं मिल पाता। परमात्मा के काम के लिए पैदा हुआ हूं, नाम के लिए नहीं। मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यही है कि प्रधानमंत्री नाम से जानते हैं। कई स्टेट के मुख्यमंत्री मुझे सम्मान देते हैं। विदेशों में राष्ट्राध्यक्ष मुझसे मिलते हैं।
बाबा सत्यनारायण मौर्य को आया न्यौता
बाबा सत्यनारायण मौर्य को 22 जनवरी 2024 को अयोध्या के भव्य राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का न्यौता मिला है। जो कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होकर अपने स्वप्न को यथार्थ बनते देखेंगे। वे कहते हैं कि ये उस समय का संघर्ष है जब हमने कार सेवा की थी जिसके कारण आज यह क्षण आया है
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